सोमवार, 20 अगस्त 2018

ग़ज़ल, गुलशन, सावन,तमस,

न गुलशन में राहत, न राहत क़फ़स में,
सुलगती है कलियां,दहक ख़ारो-खस में ।

हर एक सिम्त गूँजी ये झंकार कैसी,
ये गत किसने झेड़ी है साज़े-नफ़स में ।

इसी कशमकश में गुज़र गयी जवानी,
न दिल आया काबू न वो आये बस में ।

न बिजली चमकी न वो डर के लिपटे,
न बरसा ही सावन अबके बरस में ।

दिया हो,कि चन्दा हो ,कि या हो सितारा,
"सुमित" कुछ उजाला तो हो इस तमस में।


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