ये किसने कहा रंजो-अलम बेच रह हूँ,
शरबत बना के ज़हर-सितम बेच रहा हूँ।
परवाह नहीं जिसको रिश्तों की,वफ़ा की,
उस शख़्स को अहदो-क़सम बेच रहा हूँ ।
कहते है मुहब्बत को सभी नेमते-हस्ती,
तारीख़ में जो कुछ है रकम बेच रहा हूँ ।
ख़ुश्बू से मुअत्तर है ये फुलों से बना है,
ज़ख़्मो के लिए मरहमे-ग़म बेच रहा हूँ ।
है हौसला तो मुझसे करे रब्त बेज़ुबान,
तलवार से भी तेज़ कलम बेच रहा हूँ ।
अहले-हरम की खैर मनाता हूँ मैं "सुमीत"
इस शहर में पत्थर के सनम बेच रहा हूँ ।
शरबत बना के ज़हर-सितम बेच रहा हूँ।
परवाह नहीं जिसको रिश्तों की,वफ़ा की,
उस शख़्स को अहदो-क़सम बेच रहा हूँ ।
कहते है मुहब्बत को सभी नेमते-हस्ती,
तारीख़ में जो कुछ है रकम बेच रहा हूँ ।
ख़ुश्बू से मुअत्तर है ये फुलों से बना है,
ज़ख़्मो के लिए मरहमे-ग़म बेच रहा हूँ ।
है हौसला तो मुझसे करे रब्त बेज़ुबान,
तलवार से भी तेज़ कलम बेच रहा हूँ ।
अहले-हरम की खैर मनाता हूँ मैं "सुमीत"
इस शहर में पत्थर के सनम बेच रहा हूँ ।
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